इलैक्ट्रोलाइटिक कैपसिटर्स (Electrolytic Capacitors)
इन कैपसिटर्स का नाम इलैक्ट्रोलाइटिक रखने का कारण यह है कि इनमें पॉजिटिव तथा नेगेटिव चालक प्लेटो के बीच इलैक्ट्रोलाइट प्रयोग किया गया है । सेकण्डरी सेल की भांति कैपेसिटर कोD.C. से जोड़ने पर कैपेसिटर में रासायनिक क्रिया होती है और उसके फलस्वरूप पॉजिटिव प्लेट पर अचालक पर्त तैयार होती है जो डाइलैक्ट्रिक का कार्य करती है। ये कैपसिटर्स मुख्यतः दो प्रकार के होते है।
1 – तर किस्म (Wet-type)- इसमे एल्युमिनियम के बेलनाकार बर्तन में बोरिक एसिड तथा सोडियम बोरेट का घोल भरा होता
है।( अमोनियम बोरेट, सोडियम फोस्फेट, एल्युमिनियम बोरेट आदि के घोल भी प्रयोग किये जाते है।) घोल के बीच में एल्युमिनियम की प्लेटो का एक समूह होता है। यह समूह विभिन्न आकार, प्रकार का हो सकता है।जब प्लेटों के समूह को D.C के पॉजिटिव से तथा बर्तन को नेगेटिव से जोड़ दिया जाता है। तो कैपेसिटर में विधुत–विच्छेदन(electrolysis) प्रारम्भ हो जाता है और इसके फलस्वरूप पॉजिटिव प्लेटो पर एल्युमिनियम ऑक्साइड की एक पतली पर्त तैयार हो जाती है यह ऑक्साइड पर्त ही डाइलैक्ट्रिक का कार्य करती है
उपरोक्त क्रिया “फ़ोर्मिंग” कहलाती है और यह फैक्ट्री में ही कर दी जाती है।
2– शुष्क किस्म (Dry-type) – शुष्क प्रकार के इलैक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर में घोल के स्थान पर लुगदी (paste) प्रयोग की जाती है । इसकी संरचना पेपर कैपेसिटर की भांति होती है । इसमें एल्युमिनियम की पतली व लम्बी पट्टियो को इलैक्ट्रोलाइट की लुगदी में डूबे कागज की पट्टीयों के बीच रखते हुए बेलनाकार लपेट कर एल्युमिनियम के बेलनाकार खोल में फिट कर दिया जाता है।
शुष्क किस्म के कैपेसिटर में इलैक्ट्रोलाइट के लीकेज की सम्भावना नही रहती। अधिकतर इसी किस्म के कैपसिटर्स इलैक्ट्रोनिक सर्किट्स में प्रयोग किये जाते है।
गुण व अवगुण :
- मान – 1μF से 2000 μF तक।
- वर्किग वोल्टेज – 450 V डी.सी. तक।
- स्थिर मान के ही बनाये जाते है।
- लघु आकार में अधिक कैपेसिटी वाले कैपेसिटर बनाये जा सकते है। (डाइलैक्ट्रिक कि पर्त बहुत महीन होने के कारण )
- फ़िल्टर सर्किट्स में अधिक उपयोगी है।
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